आज भारत के ब्राह्मणों को यह भी नहीं पता कि वो कौन सेवंश की संताने है। क्योकि प्राचीन भारत में “नियोग” नाम की एक विधि युरेशियनों अर्थात ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों में प्रचलित थी। जिस में अगर कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य बच्चे पैदा करने में असमर्थ होता था तो वो अपनी पत्नी किसी दुसरे ब्राह्मण को कुछ दिनों के लिए दे देता था। पत्नी दुसरे ब्राह्मण के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना कर बच्चेपैदा करती थी।राम और पांच पांडव इसी विधि से पैदा किये गए थे। जब दशरथ के बच्चे पैदा नहीं हुए तो उसने पुत्र-प्राप्तियज्ञ नाम से एक समारोह आयोजित किया। जिस में बहुत से ब्राह्मणों को बुलाया गया और बाद में तीन ब्राह्मण चुन कर दशरथ ने अपनी तीनों रानियाँ उन ब्राह्मणों को दे दी। रानियों ने तीनों ब्राह्मणों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये और राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नाम के बच्चे पैदा किये।महाभारत में भी कुंती ने “नियोग विधि” से ही कर्ण और बाकि तीन पांड्वो को पैदा किया। खुद तो कुंती एक चरित्रहीन स्त्री थी, लेकिन कल को उसकी सौतन माद्री कल को उसको कुलटा या चरित्रहीन ना बोले इस लिए कुंती ने माद्री को भी चरित्रहीन बनाने के लिए दुसरे मर्दों के साथ बच्चे पैदा करने की सलाह दी और माद्री की पूरी मदद भी की।ब्राह्मणों,क्षत्रियों और वैश्यों के बारे और पुराणों का अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि ब्राह्मणों के वैदिक काल मैं पिता-पुत्री और माँ-पुत्र के सम्बन्ध भी उचित माने जाते थे। वशिष्ठ नाम के आर्य ने अपनी पुत्री शतरूपा से विवाह किया था, मनु ने अपनी पुत्री इला से विवाह किया था, जहानु ने अपनी बेटी जाहनवी से विवाह किया था, सूर्य ने अपनी बेटी उषा से विवाह किया था, ध्ह्प्रचेतनी और उसके पुत्र सोम ने सोम की पुत्री मारिषा से सम्भोग किया था, दक्ष ने अपनी बेटी अपने पिता ब्रह्मा को दी थी और दोहित्र ने अपनी 27 पुत्रियाँ अपने पिता सोम को संतान उत्पति के लिए दी थी।आर्य खुले में सारे आम मैथुन करते थे। “वामदेव-विरत” प्रथा के नाम पर सभी ऋषि यज्ञ भूमि में सब के सामने कईकई स्त्रियों के साथ सरे-आम सम्भोग करते थे। उदाहरण के लिए; पराशर ऋषि ने सत्यवती और धिर्धत्मा के साथ यज्ञ भूमि में सब के सामने संभोग किया था।प्राचीन काल में योनी का अर्थ घर और अयोनि का अर्थ घर से बाहर होता था। जो गर्भ घर में ठहरता था उसे योनी बोला जाता था, और जो गर्भ घर से बाहर ठहरता था उसे अयोनि कहा जाता था। सीता और द्रोपती का जन्म इसी “योनी–अयोनि” प्रथा से हुआ था। पुराने समय में नारी को किराये पर देने की प्रथा भी ब्राह्मणों में प्रचलित थी।उदाहरण के लिए; राजा ययाति ने अपनी बेटी माधवी को अपने पुत्र गालब को दिया, गालब ने माधवी को किराये पर तीन राजाओं को दिया, उसके बाद गालब ने माधवी अर्थात अपनी बहन का विवाह विश्वामित्र के कर दिया, विश्वामित्र के साथ माधवी ने एक पुत्र को जन्म दिया, उसके बाद गालव अपनी बहन माधवी को वापिस अपने पिता ययाति को दे देता है।कन्या शब्द का वैदिक अर्थ भी वह नहीं होता जो आज प्रचलित है। कन्या शब्द का वैदिक अर्थ एक ऐसी स्त्री से है जो सम्भोग के लिए स्वतंत्र हो। कुंती और मत्स्यगंधा इस के प्रमाण है। कुंती पांडू से विवाह करने से पहले ही बहुत से बच्चे पैदा कर चुकी थी। मत्स्यगंधा ने भीष्म के पिता शांतनु से विवाह करने से पूर्व पराशर ऋषि के साथ सम्भोग किया था।यूरेशियन आर्य बढ़िया संतान प्राप्त करने के लिए अपनीऔरतों को देव नामक आर्य वर्ग के लोगों को दे देते थे। यूरेशियन अर्थात 'ब्राहमणी आर्य' जानवरों से भी सम्भोग करते थे। दाम नामक आर्य ने हिरणी के साथ और सूर्य नामक आर्य ने घोड़ी के साथ सम्भोग किया था।अश्वमेघ यज्ञ में मनोरंजन के लिए औरतों से जबरदस्ती घोड़ों से सम्भोग करवाया जाता था। इस के प्रमाण यजुर्वेद और अन्य पुराणों में भी मिलते है |
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