गुरुवार, 11 जून 2015

कठिन नही है शुद्ध हिंदी-भाग-7

चंदन कुमार मिश्रकठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 7० ० ०गाँधी जी की सलाह पर स्वर वर्णों को कई लोगों और नवजीवन, गुजरात द्वारा इस प्रकार लिखा और छापा जाने लगा- अ अा अि अी अु अू अे अै अो अौयह आज भी नवजीवन द्वारा प्रकाशित किताबों में देख सकते हैं, लेकिन हिन्दी समाज ने इसे स्वीकारा नहीं। इसके पीछे विचार था कि कम संकेतों से काम चलाया जा सकता है। इसी प्रकार आज भी पुराने लोग कुछ अक्षरों कोपुराने ढंग से लिखते हैं। पुरानी किताबें मिलें, तो हम कुछ अक्षरों के पुराने रूप पाएंगे। कम से कम पढने के लिहाज से उनकी जानकारी और पहचान ज़रूरी है। लिखित रूप की कुछ बातों पर चर्चा करने में हमें हाथ से कागज पर लिखकर यहाँ रखना पड़ रहा है, क्योंकि कंप्यूटर, टैबलेट, मोबाइल आदि नये साधनों पर सब कुछ नहीं लिखा जा सकता। यहाँ चित्र में 1 से 16 तक संख्याएँ लिखी हैं, हम उनसे संबद्ध बातों पर चर्चा करेंगे। अगले भागमें फिर इसी तरह की चर्चा होगी क्योंकि हमसब लिखते अलग ढंग से हैं, छापते अलग हैं।1, 2 और 3 में घेरे हुए संकेत क्रमशः अ, ण और झ के हैं, जो अब नये रूप में लिखे जा रहे हैं। झ के नये रूप को हीनयी पीढ़ी को लिखना सिखाया जाना चाहिए।घ, ध और द्य को प्रायः ग़लत तरीके से लोग लिखते हैं। घ में शिरोरेखा (इसका जिक्र पहले किया जा चुका है, गुजराती में इसकी परंपरा संभवतः नहीं है लेकिन हिन्दी में है) से पाई (।) के साथ बायाँ मुड़ने वाला भाग भी पूर्ण रूप से मिला रहता है। चित्र 4 में घ को दिखाया गया है। ध में पाई तो शिरोरेखा से मिलती है, लेकिन बायाँ भाग नहीं मिलता और यह ऊपर की ओर खुला रहता है, घ की तरह बंद नहीं। इसके लिए चित्र 5 देखें। ध के स्थान पर द्य लिखते और छापते अक्सर देखा जा सकता है। चित्र 6 में द् और य के मिलने से बने इस वर्ण के तीनों रूप दिखाए गए हैं। यह भी अंग्रेज़ी, उर्दू आदि में नहीं होता। संस्कृत मूल के शब्दों में ही यह दिखाई पड़ता है। द्य वाले शब्द बहुत ज़्यादा नहीं हैं। ध की जगह द्य लिखने से मध्य (बीच) और मद्य (शराब), विधा (तरीका, शास्त्र) और विद्या (शिक्षा, ज्ञान), वैध (कानूनन जायज, लीगल, उचित) और वैद्य (हकीम, डॉक्टर) आदिमें अंतर ही खत्म हो जाएगा। द्य वाले कुछ शब्द हैं- विद्युत, विद्या, विद्यालय, विश्वविद्यालय, विद्यमान,आद्य, खाद्य, खाद्यान्न, पद्य, गद्य, प्रतिपाद्य, अद्य (आज के लिए संस्कृत शब्द), द्युति, प्रौद्योगिकी, प्रद्युम्न, उद्योग, उद्यान, उद्योगपति, वाद्य, सद्यः आदि। इनमें ध का प्रयोग नहीं करना चाहिए।ख को पहले रव की तरह लिखने और छापने की परंपरा थी। इससे जुड़ा एक हास्य आपने सुना ही होगा। बिना शिरोरेखा के लिखा 'रविवार को स्कूल बन्द ररवा जाता है'को 'रविवार को स्कूल बन्दर खा जाता है', यह कहा जाता है। ख को र व जैसा न लिखकर ख जैसा लिखें, तो यह भ्रम समाप्त हो जाता है। छ को लिखते समय हम चित्र 8 में दिखाए गए ढंग से लिखते हैं। यह सब अंग्रेज़ी की ही तरह है, जिसमें ए, आर आदि के छापने और लिखने के ढंग या रूप में अंतर है। चित्र 9 में त को दिखाया गया है। त को इस तरह लिखना चाहिए कि ट न समझकर कोई भी त ही पढ़े। किसी भी प्रकार की अस्पष्टता से बचना चाहिए क्योंकि लिखने का उद्देश्य सिर्फ खुद ही पढ़ना नहीं है। चित्र 10 और 11 में ह और क्ष को दिखाया गया है। क्ष केपुराने रूप को घेरे में डालकर दिखाया गया है। चित्र 15 में ज्ञ को ज् ञ के मिलने से बनकर नये रूप में आने को दिखाया गया है। यह कैसे हुआ होगा, इसे हम आगे किसी भाग में देखने का प्रयास करेंगे।16वें चित्र में यह दिखाया गया है कि ह्रस्व मात्राएँ व्यंजनों के बायीं ओर या पीछे की ओर जाती हैं, जबकि दीर्घ मात्राएँ आगे की ओर (नागरी लिपि में बायें से दायें लिखते हैं) या दायीं ओर लगती हैं। अनुस्वार व्यंजन के ठीक ऊपर लगता है। अकुंर या एंव न लिखकर अंकुर या एवं लिखना चाहिए। अक्सर लोगों में दो वर्णों के बीच में ऊपर अनुस्वार लगाते देखा जाता है, जैसे बंधन में ब और ध के बीच में अनुस्वार लगाते। अनुस्वार उसी वर्ण पर लगाते हैं, जिसके बाद उसका उच्चारण आता है। विसर्ग व्यंजन के दायीं ओर और संस्कृत मूल के शब्दों में लगाते हैं। अब इस चिन्ह कोनागरी लिपि में लिखते समय उर्दू में भी लगाया जा रहा है। विसर्ग वाले कुछ शब्द दुःख, दुःखी, प्रातःकाल, संभवतः, अंततः, क्रमशः, सामान्यतः, पूर्णतः, अंशतः, साधारणतः आदि हैं।यहाँ 'के' और 'को' एक साथ रखे गए हैं, क्योंकि इनमें ऊपर एक ऊकार की मात्रा जैसा संकेत है। लिखते समय ध्यान रखें कि एकार की मात्रा ठीक उसी व्यंजन पर लगे, जहाँ होनी चाहिए। इसी तरह ओकार की मात्रा लिखते समय वर्ण के दायीं ओर की पाई पर लगे, न कि मूल व्यंजन पर। यही बात ऐकार और औकार के लिए भी सही है। अगले भाग में चित्र से समझेंगे इसे।श्र में श् और र हैं, इसमें ऋकार नहीं लगा सकते। इसलिएश्रृंगार, श्रृंखला आदि ग़लत हैं। यहाँ श्रृ लिखा गया है जो श्, र और ऋ के मिलने से बना है। सही रूप शृंगार और शृंखला हैं। चित्र 12 में श्र के लिखित रूपदिखाए गए हैं। इनमें पहला सही है लेकिन प्रचलित नहीं है, दूसरा शुद्ध और प्रचलित है और तीसरा रूप भी लोग प्रयोग करते हैं लेकिन यह सही नहीं माना जा सकता क्योंकि यह क्ष का भ्रम पैदा करता है। चित्र 13 में शृ के ग़लत और सही लिखित रूप दिखाए गए हैं। चित्र 14 श् और च के मिश्रित रूप को दिखाता है।० ० ०ज़ारी...

2 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमोनमा प्रविष्ट करें योजना लिखें देखें

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  2. ॐ नमोनमा प्रविष्ट करें योजना लिखें देखें शुुद्ध हिन्दी रिंगटोन

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